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हिंदी उपयोजित लेखन

मेरा अगला प्रकाशन श्रीमती मीना शर्मा जी के साथ ओस की बूँदेंं (Oas ki Boonden)

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

निबंध (परोपकार का महत्व)


परोपकार का महत्व

 

परोपकार का शाब्दिक अर्थ है दूसरों की भलाई। कहा गया है -

“अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए।

परोपकार का सबसे उत्तम उदाहरण प्रकृति है।सोचिए प्रकृति से हमें धूप, चाँदनी, वर्षा,फसल, खनिज, हवा, पानी और पेड़ों की छाया, लकड़ी, फल के अलावा क्या - क्या मिलते हैं। इस पर हम सब जीव- निर्जीव हमेशा धरती को अपने पैरों तले रौंदते हैं। धरती चुपचाप हम सबका भार वहन करती है।अब सोचें हम उसे क्या - क्या लौटाते हैं ? हमारे इसी दुर्गुण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। 

प्रकृति यानि कुदरत के परोपकार की कोई सीमा नहीं है। प्रकृति के इन गुणों को किसी कवि ने इस तरह प्रस्तुत किया है।

परोपकाराय फलंति वृक्षाः, परोपकाराय वहंति नद्याः

परोपकाराय दुहंति गावः, परोपकारार्थ मिदं शरीरं।

तात्पर्य यह कि जिस तरह वृक्ष फल देकर, नदियाँ बहकर और गाएँ दूध देकर परोपकार करती हैं वैसे ही हमारा शरीर भी परोपकार के लिए ही बना है।

    "यह पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

     वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

प्रकृति की रचना ही कुछ ऐसी है कि कोई भी एकदम एकाकी नहीं जी सकता, उसे किसी न किसी के साथ की जरूरत पड़ती है। इसीलिए मनुष्य को एक दूसरे का सहायक – मददगार होना चाहिए, जिससे वे एक दूसरे की जिंदगी को आसान बना सकते हैं। ऐसी आदतों की शुरुआत घर से ही होती है, घर की संस्कृति और संस्कारों से ही पनपती हैं। उसके बाद ये आदतें घर से बाहर निकलकर पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच जाती हैं। इस तरह देखा जा सकता है कि दो व्यक्ति एक दूसरे के सहायक होकर काम करें तो वे तीन लोगों का काम कर सकते हैं। 

सोचिए,आप एक आम, नारियल, ताड़ या सुपारी का पौधा रोपते हैं। इन पौधों को पनपकर फलदायक होने में वर्षों लग जाते हैं। तब तक पता नहीं आप कहाँ रहेंगे। आपका नौकरी में तबादला हो जाता है। आप नौकरी बदल लेते हैं। किन्हीं कारणों से मकान बदल देते हैं। सेवा निवृत्त होकर बच्चों के पास या अपने निजी मकान में या फिर किसी वृद्धाश्रम में चले जाते हैं।  वृक्ष फलदायक होने पर अगली पीढ़ी या कोई और ही उन फलों को भोगता है। जिन पेड़ों के फल हम खा रहे हैं उन पेड़ों को हमारे पूर्वजों ने लगाया होगा। 

प्रकृति ने जीवन चक्र की रचना इसी तरह किया है। बहुत कम ही ऐसे भाग्यशाली लोग होते हैं जो अपने बोए या अपने रोपे पौधे का फल खा पाते हैं।

पहाड़ों पर बरसा पानी तराइयों से होकर बहते हुए पठारों में नदी बनकर बहता है। पूरे रास्ते लोग उसके पानी के अलग - अलग उपयोग करते हैं। पीने के लिए और खेतों को सींचने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। जबकि पठारों में बरसा  पानी उनके काम नहीं आता, वह निचले इलाकों की तरफ बह जाता है और उस रास्ते की जनता उसका प्रयोग कर पाती है। यदि ऐसा न हो तो बरसात वाली जगहों पर बाढ़ आ जाएगी और दूसरे जगहों पर अकाल हो जाएगा।

आपके जन्म लेने पर किसी ने आपकी सेवा की होगी। आप उन सेवाओं का अनुभव करते - करते पनपते हैं। आपकी शारीरिक व मानसिक उन्नति होती है। जबकि उधर आपके सेवादार शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर होते चले जाते हैं। अब उनको आपकी सेवाओं का जरूरत होती है। एक दिन इसी चक्र मे चलते हुए आप भी कमजोर होंगे और किसी की मदद की जरूरत का अनुभव करेंगे।

अब आप भलीभाँति समझ गए होंगे कि पारस्परिक सहायता के बिना मानव जीवन असंभव है। यही परोपकार का महत्व है। आप किसी की सहायता करते हैं कभी कोई आपकी सहायता करता है। यही प्रकृति का नियम है। यही जीवन शैली मानव के लिए ईश्वर ने बनाई है। जब समाज में हमारी छोटी सी मदद से कोई अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है, किसी का भला हो सकता है तो क्यों न हम परोपकार को अपनी आदत और अपने जीवन का हिस्सा बना लें और अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों की मदद, सेवा और भलाई करते चलें।

निबंध (समय का सदुपयोग)

समय का सदुपयोग 

समय निरंतर चलता  रहता है। कभी किसी के लिए रुकता नहीं हैं। आप उस समय का कैसा प्रयोग करते हो, यह आप पर निर्भर करता है। समय के सदुपयोग से आपके जीवन में उन्नति होगी और दुरुपयोग से अवनति। 

समय बिना कुछ भी संभव नहीं है। आप खेलना चाहें, व्यायाम करें, पढ़ें या मजाक मस्ती करें – सब में समय की आवश्यकता होती है। जो क्षण बीत गया उसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। तभी तो कहा गया है-

  "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"

यदि समय का उपयोग करके आपने कुछ सीखा तो यह आपके लिए अच्छा हुआ । यही समय का सदुपयोग है। यदि व्यायाम किया या योग साधना की तो आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत में बढ़ोतरी हुई। इसी तरह जीवन में कई काम हैं जिनसे उन्नति होती है। जिसे समय का सदुपयोग कहते हैं।

समय का उपयोग हर कोई अलग अलग तरह से करता है।

एक व्यक्ति पढ़ रहा होता है तो दूसरा मजाक- मस्ती में समय बिताता है, तो कोई जुआ खेलने में व्यतीत करता है। 

यहाँ पढ़ने वाला कुछ सीख लेता है, मजाक - मस्ती कुछ समय तक हो तो वह मन मस्तिष्क को हल्का करती है ताकि अगले काम में सही तरह से मन लगे। 

यहाँ पहले व्यक्ति के समय का सदुपयोग हुआ । दूसरे के समय का सदुपयोग भी नहीं हुआ दुरुपयोग भी नहीं हुआ । तीसरा जुआ खेलने में समय के साथ पैसों की भी बरबादी करता है। उसका तो समय और पैसा दोनों बरबाद हुए।

ध्यान रहे कि बेहद मजाक – मस्ती से भी समय की बरबादी होती है। बीता समय कभी वापस नहीं आता। यह बहते नदी के जल के समान है जो बह गया तो बह गया फिर नहीं लौटता। जीवन का समय उपयोग नहीं किया तो वह बेकार गया। पल – प्रतिपल, दिन - प्रतिदिन आपकी उम्र बढ़ती है पर आपके पास बचा समय कम होता चला जाता है। 

कबीरजी ने तो कहा है -

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।।

गाँधीजी, नेहरूजी और अन्य महापुरुषों के भी दिन में चौबीस घंटे ही होते थे, किंतु उन्होंने इतने ही समय में बहुत कुछ संभव कर दिखाया। आज इंसान उसका दस प्रतिशत भी नही कार पाता। विज्ञान के आविष्कारों ने इंसान को आलसी बना दिया है।मजबूरी न हो तो शायद ही कोई मेहनत करे। खाना, पीना,सोना वाली जिंदगी आज सबकी पसंदीदा जिंदगी हो गई है। जो कई तरह की बीमारियों का कारण बन रही है। समय का सही उपयोग तो लोग भूल ही चुके हैं।

ईश्वर ने इंसान को सीमित जीवन काल दिया है, जिसका खुद इंसान को भी पता ही नहीं होता। इंसान को जो भी करना है, वह इसी अनिश्चित समय में ही करना है। इसलिए इंसान को चाहिए कि समय का सदुपयोग करे और जितना ज्यादा हो सके, काम पूरा करता जाए।

समय को वक्त और काल भी कहा गया है। यह बहुत ताकतवर होता है। किसी ने कहा है ना - "समय बड़ा बलवान"। समय के आगे किसी की नहीं चलती। बड़े बडे-बडे राजा- महाराजा, धनाढ्य, पहलवान की भी समय से पार पा न सके। कोई भी  के समय सामने टिक नहीं सका। समय की मार का कोई जवाब नहीं होता। 

सर्वशक्तिमान प्रकृति भी समय के साथ चलती है। सौर मंडल के ग्रह भी समयानुसार अपने कक्षों मे परिक्रमा करते हैं, जिससे दिन - रात और ऋतुएं अपने समयानुसार होती रहती हैं।  समय के पाबंद न हो तो बहुत से बनते काम बिगड़ जाते हैं।

    "का वर्षा जब कृषि सुखाने

     समय बीति पुनि का पछताने"

इसीलिए सबको चाहिए कि समय के साथ चलें और समय से होड़ न करें । समय की कद्र करें, समय आपकी कद्र करेगा।

रविवार, 20 सितंबर 2020

निबंध लेखन (इंटरनेट से लाभ-हानि)

 


इंटरनेट से लाभ - हानि


इंटरनेट प्रमुखतः संप्रेषण का माध्यम है। इससे कोई भी सूचना दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पलक झपकते ही पहुँच जाती है। 


एक जमाना वह था जब लोगों को खुद जाकर  समाचार देना पड़ता था। फिर कबूतर और तोते संदेशवाहक बने। किसी के आने की खबर भी नहीं मिल पाती थी, लोग अचानक किसी के भी घर आ जाते थे। इसीलिए आगत को अतिथि कहा गया। आगत की समस्याओं को समझते हुए ही “अतिथि देवो भवा” का सिद्धान्त आया।


फिर एक दौर आया चिट्ठी - पत्री का । डाक विभाग चिट्ठियों का वाहक होता था । इसी समय बधाइयों और शादी के कार्ड भेजने का प्रचलन शुरु हुआ। कुछ समय लेकर ही सही, खबर लिखित में एक जगह से दूसरे जगह पहुँच जाती थी। दूर रहने वालों से मौखिक संप्रेषण का अब तक कोई तरीका नहीं था।


इसके बाद आया रेडियो का जमाना, जिसमें निश्चित समय पर समाचार प्रसारित होते थे। अखबार भी छपने लगे थे - रोज सुबह ही पिछले चौबीस घंटों की खबरें छपकर अखबार के रूप में द्वार - द्वार पहुँच जाती थी। फोटोग्राफी के आने से अखबारों में चित्र भी छपने लगे। चलचित्र (सिनेमा) भी शुरू हुए। धीरे - धीरे टेलीफोन और टेलिविजन आए। टेलीफोन से दूरस्थ लोगों की आवाज एक दूसरे तक पहुँचती थी और टेलिविजन से घटना की तस्वीर और वीडियो देखने मिल जाता था। पहले - पहल यह श्वेत - श्याम हुआ करता था। धीरे - धीरे सब कुछ बहुरंगी होने लगा। 


उसके बाद आया मोबाइल। जिससे दुनिया छोटी हो गई, एक छोटा सा डिब्बा हाथ में लेकर कोई भी कहीं से कहीं भी बात करने लगा। 'दुनिया मेरी जेब में' का सपना साकार होता नजर आया।


इन सबके बाद इंटरनेट का पदार्पण हुआ। जिजसे संभव होने लगे। इससे दुनिया बहुत छोटी हो गई. धरती के किसी भी कोने से किसी दूसरे कोने तक बातचीत करना, संदेश भेजना – लिखित या मौखिक चित्र सब तरह के संप्रेषण इसमें बिजली की गति से संभव होने लगे।इससे दुनिया बहुत छोटी हो गई। धरती के किसी भी कोने से किसी दूसरे कोने तक बातचीत करना, संदेश भेजना - सब कुछ बहुत आसान हो गया। संप्रेषण की गति अत्यधिक बढ़ गई। पलक झपकते ही संदेश कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है।


इस तरह इंटरनेट आने से कई पुराने ग्रंथ, पुस्तकें और विशेष सूचनाएँ पलों में उपलब्ध होने लगी । विद्यार्थियों के लिए यह ज्ञान भंडार खुल गया । पहले जहाँ जानकारी के लिए दर - दर भटककर बहुत मेहनत पड़ती थी, अब अत्यधिक सुविधाजनक रूप से और अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध होने की वजह  से लोग भ्रमित हो गए हैं।  यह तय करना मुश्किल होने लगा है कि कौन सी जानकारी का प्रयोग करना है कौन सी नहीं। मतलब यह कि पहले तो जानकारी का अभाव था और जानकारी का असीम महासागर फैला पड़ा है। समेटें कैसे, क्या लें, कितना लें, यही समझ में नहीं आता। 


इंटरनेट से घर बैठे गैस की बुकिंग, किसी से पैसों का लेनदेन, सिनेमा, रेल गाड़ियों और बस के टिकट बुकिंग, मकान दुकान की बुकिंग जैसे हजारों काम घर बैठे हो जाते हैं। बीमार होने पर अच्छे अस्पताल की जानकारी मिल जाती है। हर तरह के भोजन और राशन के सामान नेट की सुविधा से घर पर मिल जाते हैं। इंटरनेट से व्यापार बहुत बढ़ा है।


पढ़ाई भी ऑनलाइन शुरू हो गई। कोरोना के समय में लॉकडाऊन होने पर इंटरनेट सबसे ज्यादा काम आया। परीक्षाएँ भी ऑनलाइन होने लगी हैं और बहुत सारे ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं। कई सारे कोर्स घर बैठे किए जा सकते हैं। 


लेकिन इंटरनेट की वजह से बहुत हानियाँ भी हैं। इस इंटरनेट की वजह से सामाजिक पोर्टलों की भरमार हो गई। इसमें कोई भी, कभी भी, कहीं भी, कुछ भी लिख सकता है. किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं है। इसलिए सही और गलत हर तरह की सूचनाएँ भर दी गई हैं । इससे विद्यार्थी धोखा खा जाते हैं।अक्सर देखा गया है कि किसी की कविता किसी के नाम से डाल दी जाती है। ऐसे कई प्रकरण सामने आए हैं. इस तरह की क्रियाओं के कारण इंटरनेट की साख गिरी है। 


समाचारों की पुष्टि नहीं होती है, इसलिए अविश्वसनीय होने लगा है। कई बार तो किसी बड़ी हस्ती की मृत्यु की खबर फैला दी जाती है, कई झूठे समाचार फैला कर लोगों को डराने में इंटरनेट का बहुत दुरुपयोग हो रहा है।


नेट की वजह से सुविधा  प्राप्त मानव आलसी हो गया है। अब उसे खाया हुआ पचाने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ती है। वह वाकिंग करता है जिम  जाता है, जिसे हमारे पूर्वजों ने, मजदूरों और किसानों ने अनावश्यक ही समझा था ।


बे - लगाम होने की वजह से कई तरह की ऊल - जलूल सूचना व समाचार इसमे घर कर जाते हैं। अश्लीलता की यहाँ भरमार है। यह सब युवाओं को राह भटकाने के लिए काफी है। इसलिए इंटरनेट की सुविधाओँ का सदुपयोग या दुरुपयोग व्यक्ति विशेष के हाथ होता है। एक प्रचलित कोना है वीडियो गेम्स का । करीब - करीब हर नौजवान इसकी चपेट में है और कुछ गेम्स तो कइयों की जान ले चुके हैं। पता नहीं क्यों लोग समय , पैसा और जान तक गँवाने से भी डर नहीं रहे।


वैसे वीडियो गेम्स और गाने मन को आनंदित करते हैं. मस्तिष्क को तेज करते हैं, रिफ्लेक्सेस बढ़ाती हैं। भाषा की उन्नति करती है। किंतु गलत इरादों से बनी वीडियो गेम्स युवाओं को भटका रही है , उन्हें नशे की हालत तक पहुँचा रही है। लोग समय के साथ पैसा और जान गँवाने में भी नहीं सोच रहे हैं। इन हालातों में अभिभावकों की भूमिका प्रमुख होने लगती है कि बच्चे पर निगरानी रखें कि वह किस तरह के वीडियो गेम्स खेल रहा है. किस पोर्टल पर जाकर क्या देख रहा है? वीडियो गेम्स के दौरान युवा दुनिया भूल जाता है, उसे खाना, पीना, पढ़ना, सोना कुछ याद नहीं रहता।


नेट में गाने सुनने के पागलपन में युवा कान में माइक्रोफोन लगाकर सड़क पर गाड़ियाँ चलाते हैं, रेल्वे ट्रेक पर चलते रहते हैं। धुन इस हद तक होती है कि किसी की पुकार तो क्या, उन्हें गाड़ियों के हॉर्न और रेल्वे  इंजन के हॉर्न भी उस दुनिया से बाहर नहीं निकाल पाते। इससे कई हादसे हुए , कइयों ने दुर्घटनाओँ में अपनी जान गँवाई।


आज ज्ञानार्जन के लिए नेट से आप कुछ भी यानी “कुछ भी” पा सकते हैं। अब आप पर निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं।आपका निर्णय ही आपका भला-बुरा तय करता है। यही तय करता है कि आप अपनी जिंदगी को किस तरफ मोड़ते हैं और किस रास्ते चल पड़े हैं. यहीं युवाओं और बच्चों को उचित मार्गदर्शन की जरूरत है, जो अधिकतर (साधारणतया) अनुपलब्ध है। 


बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों और युवाओं को इंटरनेट की वास्तविकता से भलि भाँति परिचित कराएँ । इसकी विस्तृत जानकारी दें कि किस तरह के इंटरनेट उपयोग से जीवन को सुधारा या बिगाड़ा जा सकता है।

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शनिवार, 22 अगस्त 2020

कहानी लेखन 9

 निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

तालाब किनारे पेड़ पर एक कबूतर - नीचे चींटियों का बिल - एक दिन एक चींटी का फिसलकर पानी में गिरना - कबूतर का एक पत्ता तोड़कर चींटी के पास डालना - पत्ते पर चढ़कर चींटी का सुरक्षित किनारे आना - कुछ दिनों बाद पेड़ के नीचे शिकारी - पेड़ पर बेखबर बैठे कबूतर पर निशाना साधना - चींटी का तुरंत उसे जोर से काट लेना - निशाना चूकना - कबूतर का उड़ जाना - सीख।

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अच्छे दोस्त

क तालाब के किनारे एक पेड़ था जिस पर एक कबूतर रहता था। उसी पेड़ के नीचे चींटियों का बिल था।

एक दिन एक चींटी पेड़ पर चढ़ते समय फिसलकर पानी में गिर गई। 

जैसे ही कबूतर ने चींटी को पानी में गिरते देखा उसने पेड़ से एक पत्ता तोड़ा और चींटी के पास डाल दिया । पत्ते को पास पाकर वह चींटी उस पर चढ़ गई। पत्ता पानी में बहते - बहते किनारे लग गया। पत्ते पर से चलकर चींटी सुरक्षित  किनारे पर आ गई।

कबूतर की यह सहायता चींटी के मन में घर कर गई। मन ही मन वह अपने आपको कबूतर का एहसानमंद मानने लगी।

एक दिन एक शिकारी वहाँ आया। चींटी ने देख लिया कि शिकारी कबूतर पर निशाना साध रहा है। ऊपर देखा तो कबूतर शिकारी के निशाने से बेखबर बैठा था। चींटी को कबूतर का एहसान याद आया। वह जल्दी से शिकारी के पास पहुँच गई । वह शिकारी निशाना लगाकर बंदूक चलाने को ही था कि चींटी ने उसे काट लिया । चींटी के काटने के दर्द से शिकारी का निशाना चूक गया और कबूतर फुर्र से उड़ गया। इस तरह चीटी ने शिकारी से कबूतर की जान बचाई। 

सीख  - हमें एहसान करने वाले का कृतज्ञ होना चाहिए और उनकी जरूरत पर मदद करनी चाहिए। कबूतर ने नदी में गिरने पर चींटी की जान बचाई। उसी तरह चींटी ने शिकारी से कबूतर की जान बचाई।

कहानी लेखन 8

 

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

एक दीन हीन भिखारी - प्रतिदिन माता लक्ष्मी से प्रार्थना - माता लक्ष्मी का दर्शन व वरदान माँगने को कहना - सोने की मुहरें माँगना - माता की शर्त - मुहरें अभी अपनी झोली में लेनी होंगी, नीचे गिरीं तो मिट्टी बनेंगी - फटी पुरानी झोली फैलाना - लक्ष्मी माता द्वारा झोली में मुहरें डालना - भिखारी का लालच - और,और कहते जाना - मुहरों के बोझ से पुरानी झोली फट जाना - माता लक्ष्मी भी अदृश्य - पश्चाताप - सीख।

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लालची भिखारी

एक बहुत ही गरीब भिखारी अमीर बनना चाहता था। इसके लिए वह हमेशा माता लक्ष्मीदेवी की आराधना किया करता था। उसकी इस अपार भक्ति से लक्ष्मीदेवी प्रसन्न हुई । एक दिन लक्ष्मीदेवी ने उसे दर्शन दिया और वरदान माँगने को कहा।

भिखारी को मुँह माँगा मिल रहा था – उसका मन बल्लियों उछलने लगा। उसने लक्ष्दवी से सोने की मुहरें माँगीं । लक्ष्मीदेवी ने कहा – “मुहरें तुम्हें अभी अपनी झोली में लेनी होंगी, नीचे गिरीं तो मिट्टी हो जाएँगी”। भिखारी को खुशी में कुछ खयाल नहीं रहा। उसने हामी भरकर अपनी सड़ी - गली - पुरानी झोली आगे कर दी। लक्ष्मी देवी मुहरें बरसाने लगीं।  भिखारी अपनी अपार खुशी में “और, और” कहता गया और लक्ष्मीदेवी मुहरें बरसाती गईं । 

थोड़ी देर में पुरानी झोली मुहरों के भार से पूरी तरह फटकर तार - तार हो गई । फलस्वरूप सारी मोहरें धरती पर गिरीं और गिरते ही लक्ष्मीदेवी के कथनानुसार मिट्टी बन गईं। इसके साथ ही लक्ष्मीदेवी भी अदृश्य हो गई ।

झोली के फटने पर भिखारी को अपनी भूल का एहसास हुआ, पर अब तो समय हाथ से जा चुका था। उसे अपनी भूल या मूर्खता पर बहुत पश्चाताप हुआ ।

सीख – लालच बुरी बला है और किसी भी जगह अति करने से बचना चाहिए। अति हमेशा नुकसानदायक होती है।

कहानी लेखन 7

 

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें


नमक का व्यापारी - गधा पालना - गधे पर नमक की बोरियाँ ले जाना - राह में नदी - गधे का पाँव फिसलना - नमक पानी में घुलना - बोझ हल्का - अब हर रोज गधे की चालाकी - जान बूझकर पानी में गिरना -  व्यापारी का निरीक्षण - अगले दिन रूई लादना - पानी में भीगकर रूई भारी - सबक। 

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चतुर गधा

एक व्यापारी नमक का धंधा करता था। उसके घर और मंडी के बीच रास्ते में एक छोटी सी नदी पड़ती थी । उसने अपना माल वहन करने के लिए एक गधा पाला। रोज वह गधे पर लादकर नमक की बोरियाँ मंडी ले जाता और वहीं नमक बेचता था। रोज शाम मंडी बंद होने पर बचा नमक फिर बोरे में भरकर, मंडगधे पर लाद कर वापस घर ले आता था। यही उसकी दिनचर्या थी। 

एक दिन ी जाते समय रास्ते में गधे का पैर फिसला और वह नदी में गिर पड़ा। किसी तरह व्यापारी ने गधे को पानी में से निकाला और गधा नमक की गीली बोरियों के साथ मंडी पहुँच गया। गधे को आभास हुआ कि नदी में गिरने की वजह से उस पर लदा हुआ वजन घटा है।उसने सोचा हो न हो नदी में गिरने से भार कम हो जाता है। उधर व्यापारी पानी में नमक घुल जाने से अपने नुकसान के लिए दुःखी हो रहा था और गधे के गिरने पर अफसोस कर रहा था।

गधे ने अपनी इस नई अकल को आजमाना चाहा। फिर एक दिन जानबूझ कर पाँव फिसलने के बहाने नदी में गिर पड़ा। इस बार भी उसको वजन घटा महसूस हुआ । अब वह समझने लगा  - “नदी में गिरने से वजन घट जाता है।” 

फिर क्या था, अब वह अक्सर पाँव फिसलने के बहाने नदी में गिर जाया करता था। बेचारा व्यापारी बहुत समय तक तो इसे वास्तविकता समझता रहा लेकिन गधे के गिरने की हरकतें बढ़ते जाने पर उसे शक हुआ कि गधा जानबूझ कर नदी में गिर रहा है और फिसलना मात्र एक नाटक है। दो एक बार नजर रखने पर जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने गधे को सबक सिखाने का निश्चय किया।

इसी सोच से व्यापारी ने एक दिन गधे पर नमक के बदले कपास की बोरियाँ लादीं । गधा आज फिर पाँव फिसल जाने के बहाने नदी में गिरा । नमक तो भीगकर घुल जाता था पर कपास तो पानी सोखकर भारी हो गया। अब गधे को बोझ ढोना भारी पड़ रहा था। जब व्यापारी ने कुछ और दिन ऐसा ही किया तो गधे को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बार – बार  पाँव फिसलने और नदी में गिरने के बहाने करना  छोड़ दिया।

सीख – किसी को भी अपनी अकल का सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए. गलत जगह अकल लगाने से नुकसान ही होता है।

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गुरुवार, 6 अगस्त 2020

कहानी लेखन - 6

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

एक हंस और एक कौए में मित्रता - हंस का कौए के साथ उड़ते जाना - कौए का दधिपात्र लेकर जाने वाले ग्वाले को देखना - ललचाना - कौए का दही खाने का आग्रह - हंस का इनकार-कौए का घसीटकर ले जाना - कौए का चोंच नचा-नचाकर दही खाना -हंस का बिलकुल न खाना - आहट पाकर कौए का उड़ जाना -हंस का पकड़ा जाना - सीख
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हंस और कौआ

एक कौवे ने हंस की तरफ दोस्ती का हाथ बढाया। हंस जानता था कि कौए चतुर होते हैं किंतु कौए की खुद से दोस्ती की फरमाइश पर वह मुग्ध हो गया। कौए और हंस की दोस्ती हो गई। अब दोनों साथ-साथ उड़ान भरने लगे। कौए की चतुराई भरी बातें सुनते हुए आसमान में उड़ना हंस को बहुत अच्छा लगने लगा। वह अक्सर कौए के साथ उड़ता रहा।

एक दिन उड़ते-उड़ते कौए को एक ग्वाला नजर आया। वह दही की हाँडी लेकर जा रहा था। उसे देखकर कौआ ललचाया और किसी तरह दही खाने की सोचने लगा। उसने हंस से कहा "चलो दही चख कर आते हैं"। पर हंस ने मना कर दिया। उसने तरह - तरह से हंस को मनाने की कोशिश की । अंततः हंस दोस्त और दोस्ती की खातिर मान ही गया। 

दोनों उड़ते हुए ग्वाले की दही की हाँडी तक पहुँचे। कौआ चोंच मार - मारकर दही खाने लगा। उसे दही बहुत मजेदार लगा। वह चोंच नचाने लगा और नचा-नचाकर दही खाते हुए चटखारे लेने लगा। इधर हंस को दही नहीं खाना था, सो उसने दही नहीं खाया। वह सिर्फ कौए के साथ बैठा रहा। 

थोड़ी देर में ग्वाले को भनक मिली और वह हाँडी की तरफ लपका। ग्वाले की आहट पाकर चतुर, फुर्तीला, सयाना कौआ उड़ गया किंतु बेचारा निर्दोष हंस, जिसने दही चखा ही नहीं, इतनी फुर्ती से उड़ नहीं पाया। ग्वाले ने हंस को पकड़ लिया और पिंजरे में बंद कर दिया।

अब हंस को समझ आया, चतुर कौए से संगत का नतीजा। दुष्ट कौए से दोस्ती करने पर उसने अपनी स्वतंत्रता गँवाई। 

सीख : दुष्ट और दुर्जन व्यक्ति की संगत से हमेशा नुकसान ही होता है।
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रविवार, 2 अगस्त 2020

कहानी लेखन 5


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

एक किसान, उसके दो बेटे - खेत में फसल का पकना - खड़ी फसल के बीच टिटहरी का घोंसला - उसके बच्चे छोटे - एक दिन किसान का आना - पड़ोसी से फसल काट देने को कहना - बच्चे चिंतातुर - टिटहरी के आने पर बताना - टिटहरी का कहना - डरो मत, फसल नहीं कटेगी - अगले दिन किसान का नौकरों को लेकर आना - फसल काटने को कहना - टिटहरी के बच्चे चिंतातुर - टिटहरी का वही उत्तर - उसके बाद किसान का अपने लड़कों को लाना - फसल काटने को कहना - टिटहरी के बच्चों का डर - टिटहरी का उत्तर, कुछ नहीं होगा डरो मत  - अगले दिन किसान का आना और कहना - "किसी के भरोसे रहने से काम नहीं होगा, कल से मैं ही कटाई करूँगा" - बच्चों का टिटहरी को बताना - टिटहरी का उत्तर  - "बच्चों! अब इस खेत को छोड़ देने में ही भलाई है"- कहानी की सीख। ---
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स्वयंकृति

एक किसान था। उसके दो बेटे थे। उसके पास खेत भी थे। वह उसमें फसल उगाता था। अभी खेत में फसल लगी हुई थी। फसल पकने को थी। उसी खेत में फसल के बीच एक टिटहरी का घोंसला था। वह उसमें अपने बच्चों के साथ रहती थी।

एक दिन किसान अपने पड़ोसी के साथ खेत पर फसल देखने गया। वहाँ उसने देखा कि फसल पूरी तरह पक चुकी है। उसने पड़ोसी से कहा कि कल से वह फसल की कटाई शुरु कर दे और दालान तक पहुँचा दे। यह वार्तालाप टिटहरी के बच्चों ने सुना, वे परेशान हो गए। सोच में लग गए कि अब हमारा क्या होगा ? टिटहरी के आने पर बच्चों ने उसे सूचित किया। टिटहरी सुनकर संयत रही और उसने बच्चों को समझाया – “डरने की कोई जरूरत नहीं है , फसल कटने वाली नहीं है।“

दो दिन बाद जब किसान नौकरों को लेकर खेत पर आया तो देखा कि फसल की कटाई शुरु नहीं हुई। उसने नौकरों से कहा कि कल से वे फसल की कटाई शुरु करें और उसे दालान तक पहुँचा दें। टिटहरी के बच्चों ने फिर बातें सुनी और लौटने पर टिटहरी को बताया। टिटहरी फिर भी शांत थी। उसने बच्चों को सान्त्वना दिया कि घबराएँ नहीं, ऐसे किसी पर निर्भर होने से काम नहीं होने वाला है।

फिर दो दिन बाद किसान अपने बेटों को लेकर खेत पर गया तो उसने देखा कि अब तक फसल कटना शुरु नहीं हुआ है। उसने नाराजगी जताते हुए अपने बेटों को ही अगले दिन से फसल काटने को कहा। टिटहरी को बच्चों  ने फिर खबर दी और टिटहरि बेफिक्र रहते हुए से बोली कि कोई  चिंता की बात नहीं है। किसान अब भी  दूसरों पर निर्भर कर रहा है। फसल नही कटेगी। तुम परेशान मत हो।

अंततः हुआ वही जो टिटहरी ने कहा, फसल कटनी शुरु नही हुई । टिटहरी के बच्चे निश्चिंत हुए। अब जब किसान खेत पर आकर देखा कि फसल कटनी अब तक भी शुरु नहीं हुई है, तब वह वह निराश हो गया। उसने सोचा कि अब किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता । वह अपने आप मे ही बुदबुदाया –  कल से मैं ही फसल काटने का काम शुरु करूँगा। हर दिन की तरह आज भी टिटहरी के बच्चों ने लौटने पर टिटहरी को बताया कि किसान कह रहा था कि वह खुद कल से फसल काटेगा। 

अब टिटहरी के चेहरे पर शिकन साफ दिखने लगी। उसने बच्चों से कहा – अब किसान खुद फसल काटने वाला है, इसलिए फसल कल कटेगी। हमारा अब इस खेत से हट जाना ही बेहतर होगा, वरना हमारा घोसला टूट जाएगा और हम बेघर हो जाएंगे। हो सकता है बच्चों को जान का भी खतरा हो। यही सोचकर टिटहरी अपने बच्चों को लेकर खेत छोड़कर चली गई।

अगले दिन किसान खुद आकर खेत में फसल काटना शुरु कर दिया। इस तरह से टिटहरी की व्यावहारिकता की वजह से समय पर उसने अपनी और बच्चों की  जान सुरक्षित कर लिया।

सीख – अन्यों पर भरोसा करने से काम पूरा होने की शक्यता ही रहती है।अनिश्चितता की स्थिति से उबरने के लिए और काम होने की निश्चितता के लिए अपना काम खुद ही करना चाहिए। इसी के कारण जब तक किसान पड़ोसी, नौकरों और बेटों पर निर्भर कर रहा था, तब टिटहरी परेशान नहीं हुई । जैसे ही किसान ने खुद फसल काटने की बात किया, टिटहरी अपने बच्चों को लेकर दूसरे खेत पर चली गई। इससे समय पर वह चौकन्नी होकर अपनी और बच्चों की जान बचा सकी।

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शनिवार, 1 अगस्त 2020

कहानी लेखन 4

 
 निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

बोपदेव नामक एक मंदबुद्धि बालक ... मंदबुद्धि के कारण गुरु द्वारा गुरुकुल से बाहर निकाला जाना ... बोपदेव का घर की ओर जाना ...रास्ते में प्यास लगने पर कुएँ को पास रुकना ...   कुएँ की जगत पर रस्सी के निशान देखना ... विचार करना ... पुनः गुरुकुल जाकर एकाग्रचित्त होकर पढ़ना ... सफल होना ... शिक्षा

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जगत पर निशान


एक गाँव में बोपदेव नाम का एक बालक रहता था। उसके माता - पिता ने उसे शिक्षा ग्रहण करने हेतु गुरुकुल भेजा। किंतु बोपदेव का मन पढ़ने में लगता ही नहीं था। कुछ ही दिनों में मंद बुद्धि वाला कहकर गुरूजी ने उसे गुरुकुल से निकाल दिया और कहा कि तुम यहाँ कुछ नहीं सीख सकते, घर जाकर पिता का खेती - बाड़ी में हाथ बँटाओ।

बोपदेव हताश निराश , अब क्या करता? अपने घर की तरफ चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद उसे प्यास लगी। थोड़ा और चलने पर उसे एक कुआं नजर आया।

बोपदेव पानी पीने कुएं की तरफ मुड़ गया। कुएं से पानी निकालते समय उसकी नजर जगत पर पड़े गहरे निशान पर पडी। उसने गौर से देखा तो उसे समझ आया कि हो न हो यह निशान पानी निकालते समय बार - बार रस्सी के जगत पर घिसने के कारण ही बना है। उसने सोचा -  " जब इस नरम रस्सी के बार - बार घिसने से पत्थर के बने इस  जगत पर इतना गहरा निशान बन सकता है तो मैं भी बार-बार पढ़कर बहुत - बहुत मेहनत करके गुरूजी के पाठ क्यों नहीं सीख सकता?" यही सोचकर बोपदेव ने घर जाने का इरादा बदल कर वापस गुरुकुल की तरफ चल पड़ा।

गुरुकुल पहुँच कर उसने गुरूजी को आपबीती सुनाई और अपना दृढ़निश्चय भी बताया कि मैं अब आपके पाठ को बार - बार पढ़ूँगा और सीखूँगा। गुरूजी को बोपदेव के निश्चय   पर विश्वास हुआ और उन्होंने बोपदेव को गुरुकुल में रहकर पढ़ने की इजाजत दे दी।

बोपदेव पुनः गुरुकुल में रहकर एकाग्रता के साथ बार-बार पढ़कर गुरूजी के पढ़ाए पाठ सीखता गया। जब वह गुरूजी के प्रश्नों का सही उत्तर देने लगा तो गुरूजी बहुत प्रसन्न हुए। अंततः अपनी मेहनत और लगन के बल पर बोपदेव ने गुरुकुल की हर परीक्षा उत्तीर्ण कर ली तथा वे बहुत ही विद्वान और ज्ञानी बन गए।
इसीलिए कहा जाता है:-

करत करत अभ्यास के,
जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात सों,
सिल पर पडत निशान।

सीख - वास्तव में कोई भी बालक मंदबुद्धि नहीं होता, कमी होती है एकाग्रता की। हमें अपनी मंजिल पाने के लिए निरंतर, अथक प्रयास करते रहना चाहिए। कोशिशें एक दिन सफल होती हैं। यदि बीच में ही हार मानकर कोशिश करना छोड़ देने पर मंजिल कभी नहीं मिल सकती। सफलता का राज कोशिश है। कहा गया है- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
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गुरुवार, 30 जुलाई 2020

कहानी लेखन 3


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।
एक गड़रिए का जंगल में भेड़ों को चराने जाना ...गड़रिए को शरारत सूझना ... झूठ-मूठ ''भेड़िया आया, भेड़िया" आया चिल्लाना ... गाँव वालों का सहायता के लिए आना ... गडरिए द्वारा कुछ दिनों बाद पुनः शरारत दोहराना ... गाँव वालों को बेवकूफ बनाना ... एक दिन सचमुच भेड़िए का  का गाँव वालों को सहायता के लिए पुकारना ... गाँव वालों का अनसुना करना ... भेड़िए द्वारा गड़रिए का मारा जाना।
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भेड़िया आया

प्रतिदिन की तरह एक गड़रिया भेड़ चराने जंगल में गया । आज उसे एक शरारात सूझी कि गाँव वालों को बुद्धू बनाया जाए – परेशान किया जाए । उसने एक तरकीब निकाली और अकारण ही चिल्लाने लगा- “भेड़िया आया - भेड़िया आया । आवाज जैसे ही गाँव वालों के कानों तक पहुँची , वे सब लाठी और अन्य हथियारों से लैस भेड़ और भेडिए को बचाने जंगल की तरफ भागे। 

जंगल पहुँचकर गाँव वालों ने जो देखा, वह आश्चर्यजनक था। गड़रिया एक टीले पर बैठै खिलखिला रहा था और भेड़ें चर रही थीं। गड़रिए से पूछा तो वह हँसने लगा, जैसे उसने अपनी अक्ल से गाँव वालों को बुद्धू बना दिया हो। गांव वाले भी गडरिए की इस हरकत को उसके बचपने की बचकानी हरकत समझ कर, चुपचाप वापस गाँव लौट गए। गड़रिए को एक तरफ तो अपनी अक्ल पर नाज हो रहा था तो दूसरी तरफ गाँव वालों को मूर्ख बनाने की खुशी हो रही थी। लेकिन उसे समझ नहीं  आ रहा था कि उसने गाँव वालों का कितना विश्वास खोया है।

इसी खुशी के चलते कुछ - कुछ दिनों के बाद गड़रिए ने फिर इसे दोहराया। गाँव वाले उसे बचाने के लिए आते और गड़रिए को हँसते खिलखिलाते देखकर निराश होते और लौट जाते। इससे गाँव वाले ज्यादा परेशान और निराश हुए। उन्हें गड़रिए की हरकत  ने उनको बहुत दुखी किया। लोगों का गड़रिए पर का विश्वास डगमगाया। लेकिन गड़रिया था कि इससे मजे ले रहा था। ऐसी हरकतों के होते रहने के कारण धीरे - धीरे गाँव वालों का भरोसा घटता गया।

कुछ अंतराल के बाद एक दिन सचमुच ही भेड़िया गड़रिए के आस-पास आ  गया। जान बचाने के लिए गड़रिया गला फाड़कर चिल्लाने लगा । आवाज गाँव वालों तक पहुँची भी, किंतु उन्होंने इसे गड़रिए द्वारा एक और मजाक समझ लिया। फलस्वरूप गाँव से कोई भी गड़रिए को बचाने जंगल नहीं गया। अंततः भेड़िए द्वारा गड़रिया मारा गया। इस तरह अपनी मजाकिया हरकतों से गड़रिए ने गाँव वालों का विश्वास खोया, यही उसके अपनी मौत का कारण बना।

सीख – हमें समय और हालातों को ध्यान में रखकर मजाक या शरारत करनी चाहिए। मजाक या शरारत ऐसी हो कि कोई दुःखी न हो। मूर्खता पूर्ण शरारतों के कारण ही गड़रिए ने अपने प्राण गँवाए।


बुधवार, 29 जुलाई 2020

कहानी लेखन 2


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

भूखी लोमड़ी ...भोजन की तलाश मे घूमना .... बगीचे में अंगूरों के गुच्छे  देखना ... लोमड़ी का उछल उछलकर अंगूरों पर लपकना ... अंगूरों के गुच्छे बहुत ऊँचाई पर होना ... लोमड़ी का थकना ... अपनी पराजय को स्वीकार न करना    ... अंगूरों को खट्टा बताना।
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खट्टे अंगूर

एक जंगल में एक लोमड़ी थी।एक दिन वह बहुत भूखी थी। भोजन की तलाश में इधर उधर भटक रही थी। वह भूख से बहुत परेशान थी। भोजन तलाशने की परेशानी में वह एक बगीचे में घुस गई। वहाँ उसने अंगूर की बेल देखी जिस पर अंगूर गुच्छों में लगे थे।अंगूरों का गुच्छा देखकर लोमडी ललचाई, उसकी भूख और तेज हो गई। 

वह लोमड़ी उछल - उछलकर अंगूरों के गुच्छे को पाने की कोशिश करने लगी। पर चूँकि अंगूर के गुच्छे बहुत ऊँचाई पर थे, लाख कोशिशों के बावजूद भी वे लोमड़ी के हाथ नहीं लगे।

अंततः लोमड़ी हार गई पर उसे हारना स्वीकार न था। उसने एक बहाना बनाया अपनी तसल्ली के लिए कि "अंगूर खट्टे थे इसलिए उन्हें छोड़ दिया" इसे ही कहते हैं - नाच न जाने , आँगन टेढ़ा।

घमंडी /धूर्त हार मानने से बचते हुए दोष दूसरे पर मढ़ता है। उससे अपनी गलती कभी स्वीकार नहीं की जाती। 

सीख- घमंडी और धूर्त अपनी हार छुपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ते रहते हैं। हममें सच को स्वीकारने की हिम्मत होनी चाहिए।
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सोमवार, 27 जुलाई 2020

कहानी लेखन 1


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

क हरा भरा सुंदर वन.....इंद्र का आगमन...वन में घूमना...एक सूखा पेड़ दिखना...पेड़ पर एक तोता...इंद्र भगवान का प्रश्न... तुम हरे भरे वृक्षों को छोड़कर इस सूखे वृक्ष पर क्यों?...तोते का उत्तर...हरे भरे वृक्ष ने मुझे आसरा दिया, संकट में इसका साथ कैसे छोड़ूँ? ... इंद्र प्रसन्न ... वरदान...वृक्ष को पुनःहरा भरा ... सीख।
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कृतज्ञता

एक बार इंद्रदेव, किसी हरे भरे वन में विचरण करने गए। वन विचरण का आनंद लेते समय टहलते हुए उनकी निगाह एक सूखे पेड़ पर पड़ी। उन्हें आश्चर्य हुआ कि इस हरे भरे कानन में ये सूखा पेड़ कैसा? अवलोकन करते हुए उन्होंने सूखे पेड़ पर एक तोते को बैठे देखा। वे घोर आश्चर्य मे पड़ गए। 

यहाँ यह सूखा पेड़ और उस पर विराजमान यह तोता! जरूर कोई खास बात है। हरे भरे वृक्षों को छोडकर तोता इस सूखे पेड़ पर क्यों बैठा है? उन्होंने तोते से ही पूछ लिया कि तुम इस वन के सारे हरे भरे वृक्षों को छोडकर इस सूखे पेड़ पर क्यों बैठे हुए हो?


तोते ने जवाब दिया, "श्रीमन् ! अपने हरे भरे समय में यह वृक्ष ही मेरा आसरा था। धूप और बारिश में इसने मुझे शरण दी थी। हमेशा इसने मुझे पूरा सहारा दिया है। मेरा घोंसला इसी पर रहा। इसकी हरी भरी डालियों पर मेरे बच्चे खेल-कूदकर बड़े हुए और खुले आसमान में उड़ने के काबिल हुए। अब जब यह सूख गया और मुसीबत में है तो मैं इसका साथ छोडकर कृतघ्नता कैसे कर सकता हूँ? हमें तो उपकार करने वालों का कृतज्ञ होना चाहिए। उनकी मुसीबत के समय भी उनका साथ देना चाहिए। इसी आशय से मैं इस पेड़ पर बैठा हूँ। मैं इसे मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ सकता।"


इंद्रदेव को तोते की बात भा गई। उसकी कृतज्ञता पर वे प्रसन्न हुए और उन्होंने वृक्ष को पुनः हरा भरा कर दिया। तोता यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ।


सीख : हमे हमेशा उपकार करने वाले का कृतज्ञ होना चाहिए और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए, भले ही वह मुसीबत में हो।

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