इस ब्लॉग पर हिंदी में मुद्दों से कहानी लेखन, पत्र लेखन, निबंध व अन्य विधाओं का उपयोजित लेखन दिया जाएगा. आशा है कि विद्यार्थियों और शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए यह ब्लॉग उपयोगी रहेगा।
हिंदी उपयोजित लेखन

मेरा अगला प्रकाशन श्रीमती मीना शर्मा जी के साथ ओस की बूँदेंं (Oas ki Boonden)

शनिवार, 22 अगस्त 2020

कहानी लेखन 9

 निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

तालाब किनारे पेड़ पर एक कबूतर - नीचे चींटियों का बिल - एक दिन एक चींटी का फिसलकर पानी में गिरना - कबूतर का एक पत्ता तोड़कर चींटी के पास डालना - पत्ते पर चढ़कर चींटी का सुरक्षित किनारे आना - कुछ दिनों बाद पेड़ के नीचे शिकारी - पेड़ पर बेखबर बैठे कबूतर पर निशाना साधना - चींटी का तुरंत उसे जोर से काट लेना - निशाना चूकना - कबूतर का उड़ जाना - सीख।

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अच्छे दोस्त

क तालाब के किनारे एक पेड़ था जिस पर एक कबूतर रहता था। उसी पेड़ के नीचे चींटियों का बिल था।

एक दिन एक चींटी पेड़ पर चढ़ते समय फिसलकर पानी में गिर गई। 

जैसे ही कबूतर ने चींटी को पानी में गिरते देखा उसने पेड़ से एक पत्ता तोड़ा और चींटी के पास डाल दिया । पत्ते को पास पाकर वह चींटी उस पर चढ़ गई। पत्ता पानी में बहते - बहते किनारे लग गया। पत्ते पर से चलकर चींटी सुरक्षित  किनारे पर आ गई।

कबूतर की यह सहायता चींटी के मन में घर कर गई। मन ही मन वह अपने आपको कबूतर का एहसानमंद मानने लगी।

एक दिन एक शिकारी वहाँ आया। चींटी ने देख लिया कि शिकारी कबूतर पर निशाना साध रहा है। ऊपर देखा तो कबूतर शिकारी के निशाने से बेखबर बैठा था। चींटी को कबूतर का एहसान याद आया। वह जल्दी से शिकारी के पास पहुँच गई । वह शिकारी निशाना लगाकर बंदूक चलाने को ही था कि चींटी ने उसे काट लिया । चींटी के काटने के दर्द से शिकारी का निशाना चूक गया और कबूतर फुर्र से उड़ गया। इस तरह चीटी ने शिकारी से कबूतर की जान बचाई। 

सीख  - हमें एहसान करने वाले का कृतज्ञ होना चाहिए और उनकी जरूरत पर मदद करनी चाहिए। कबूतर ने नदी में गिरने पर चींटी की जान बचाई। उसी तरह चींटी ने शिकारी से कबूतर की जान बचाई।

कहानी लेखन 8

 

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

एक दीन हीन भिखारी - प्रतिदिन माता लक्ष्मी से प्रार्थना - माता लक्ष्मी का दर्शन व वरदान माँगने को कहना - सोने की मुहरें माँगना - माता की शर्त - मुहरें अभी अपनी झोली में लेनी होंगी, नीचे गिरीं तो मिट्टी बनेंगी - फटी पुरानी झोली फैलाना - लक्ष्मी माता द्वारा झोली में मुहरें डालना - भिखारी का लालच - और,और कहते जाना - मुहरों के बोझ से पुरानी झोली फट जाना - माता लक्ष्मी भी अदृश्य - पश्चाताप - सीख।

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लालची भिखारी

एक बहुत ही गरीब भिखारी अमीर बनना चाहता था। इसके लिए वह हमेशा माता लक्ष्मीदेवी की आराधना किया करता था। उसकी इस अपार भक्ति से लक्ष्मीदेवी प्रसन्न हुई । एक दिन लक्ष्मीदेवी ने उसे दर्शन दिया और वरदान माँगने को कहा।

भिखारी को मुँह माँगा मिल रहा था – उसका मन बल्लियों उछलने लगा। उसने लक्ष्दवी से सोने की मुहरें माँगीं । लक्ष्मीदेवी ने कहा – “मुहरें तुम्हें अभी अपनी झोली में लेनी होंगी, नीचे गिरीं तो मिट्टी हो जाएँगी”। भिखारी को खुशी में कुछ खयाल नहीं रहा। उसने हामी भरकर अपनी सड़ी - गली - पुरानी झोली आगे कर दी। लक्ष्मी देवी मुहरें बरसाने लगीं।  भिखारी अपनी अपार खुशी में “और, और” कहता गया और लक्ष्मीदेवी मुहरें बरसाती गईं । 

थोड़ी देर में पुरानी झोली मुहरों के भार से पूरी तरह फटकर तार - तार हो गई । फलस्वरूप सारी मोहरें धरती पर गिरीं और गिरते ही लक्ष्मीदेवी के कथनानुसार मिट्टी बन गईं। इसके साथ ही लक्ष्मीदेवी भी अदृश्य हो गई ।

झोली के फटने पर भिखारी को अपनी भूल का एहसास हुआ, पर अब तो समय हाथ से जा चुका था। उसे अपनी भूल या मूर्खता पर बहुत पश्चाताप हुआ ।

सीख – लालच बुरी बला है और किसी भी जगह अति करने से बचना चाहिए। अति हमेशा नुकसानदायक होती है।

कहानी लेखन 7

 

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें


नमक का व्यापारी - गधा पालना - गधे पर नमक की बोरियाँ ले जाना - राह में नदी - गधे का पाँव फिसलना - नमक पानी में घुलना - बोझ हल्का - अब हर रोज गधे की चालाकी - जान बूझकर पानी में गिरना -  व्यापारी का निरीक्षण - अगले दिन रूई लादना - पानी में भीगकर रूई भारी - सबक। 

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चतुर गधा

एक व्यापारी नमक का धंधा करता था। उसके घर और मंडी के बीच रास्ते में एक छोटी सी नदी पड़ती थी । उसने अपना माल वहन करने के लिए एक गधा पाला। रोज वह गधे पर लादकर नमक की बोरियाँ मंडी ले जाता और वहीं नमक बेचता था। रोज शाम मंडी बंद होने पर बचा नमक फिर बोरे में भरकर, मंडगधे पर लाद कर वापस घर ले आता था। यही उसकी दिनचर्या थी। 

एक दिन ी जाते समय रास्ते में गधे का पैर फिसला और वह नदी में गिर पड़ा। किसी तरह व्यापारी ने गधे को पानी में से निकाला और गधा नमक की गीली बोरियों के साथ मंडी पहुँच गया। गधे को आभास हुआ कि नदी में गिरने की वजह से उस पर लदा हुआ वजन घटा है।उसने सोचा हो न हो नदी में गिरने से भार कम हो जाता है। उधर व्यापारी पानी में नमक घुल जाने से अपने नुकसान के लिए दुःखी हो रहा था और गधे के गिरने पर अफसोस कर रहा था।

गधे ने अपनी इस नई अकल को आजमाना चाहा। फिर एक दिन जानबूझ कर पाँव फिसलने के बहाने नदी में गिर पड़ा। इस बार भी उसको वजन घटा महसूस हुआ । अब वह समझने लगा  - “नदी में गिरने से वजन घट जाता है।” 

फिर क्या था, अब वह अक्सर पाँव फिसलने के बहाने नदी में गिर जाया करता था। बेचारा व्यापारी बहुत समय तक तो इसे वास्तविकता समझता रहा लेकिन गधे के गिरने की हरकतें बढ़ते जाने पर उसे शक हुआ कि गधा जानबूझ कर नदी में गिर रहा है और फिसलना मात्र एक नाटक है। दो एक बार नजर रखने पर जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने गधे को सबक सिखाने का निश्चय किया।

इसी सोच से व्यापारी ने एक दिन गधे पर नमक के बदले कपास की बोरियाँ लादीं । गधा आज फिर पाँव फिसल जाने के बहाने नदी में गिरा । नमक तो भीगकर घुल जाता था पर कपास तो पानी सोखकर भारी हो गया। अब गधे को बोझ ढोना भारी पड़ रहा था। जब व्यापारी ने कुछ और दिन ऐसा ही किया तो गधे को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बार – बार  पाँव फिसलने और नदी में गिरने के बहाने करना  छोड़ दिया।

सीख – किसी को भी अपनी अकल का सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए. गलत जगह अकल लगाने से नुकसान ही होता है।

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गुरुवार, 6 अगस्त 2020

कहानी लेखन - 6

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर एक कहानी लिखें और उचित शीर्षक दें

एक हंस और एक कौए में मित्रता - हंस का कौए के साथ उड़ते जाना - कौए का दधिपात्र लेकर जाने वाले ग्वाले को देखना - ललचाना - कौए का दही खाने का आग्रह - हंस का इनकार-कौए का घसीटकर ले जाना - कौए का चोंच नचा-नचाकर दही खाना -हंस का बिलकुल न खाना - आहट पाकर कौए का उड़ जाना -हंस का पकड़ा जाना - सीख
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हंस और कौआ

एक कौवे ने हंस की तरफ दोस्ती का हाथ बढाया। हंस जानता था कि कौए चतुर होते हैं किंतु कौए की खुद से दोस्ती की फरमाइश पर वह मुग्ध हो गया। कौए और हंस की दोस्ती हो गई। अब दोनों साथ-साथ उड़ान भरने लगे। कौए की चतुराई भरी बातें सुनते हुए आसमान में उड़ना हंस को बहुत अच्छा लगने लगा। वह अक्सर कौए के साथ उड़ता रहा।

एक दिन उड़ते-उड़ते कौए को एक ग्वाला नजर आया। वह दही की हाँडी लेकर जा रहा था। उसे देखकर कौआ ललचाया और किसी तरह दही खाने की सोचने लगा। उसने हंस से कहा "चलो दही चख कर आते हैं"। पर हंस ने मना कर दिया। उसने तरह - तरह से हंस को मनाने की कोशिश की । अंततः हंस दोस्त और दोस्ती की खातिर मान ही गया। 

दोनों उड़ते हुए ग्वाले की दही की हाँडी तक पहुँचे। कौआ चोंच मार - मारकर दही खाने लगा। उसे दही बहुत मजेदार लगा। वह चोंच नचाने लगा और नचा-नचाकर दही खाते हुए चटखारे लेने लगा। इधर हंस को दही नहीं खाना था, सो उसने दही नहीं खाया। वह सिर्फ कौए के साथ बैठा रहा। 

थोड़ी देर में ग्वाले को भनक मिली और वह हाँडी की तरफ लपका। ग्वाले की आहट पाकर चतुर, फुर्तीला, सयाना कौआ उड़ गया किंतु बेचारा निर्दोष हंस, जिसने दही चखा ही नहीं, इतनी फुर्ती से उड़ नहीं पाया। ग्वाले ने हंस को पकड़ लिया और पिंजरे में बंद कर दिया।

अब हंस को समझ आया, चतुर कौए से संगत का नतीजा। दुष्ट कौए से दोस्ती करने पर उसने अपनी स्वतंत्रता गँवाई। 

सीख : दुष्ट और दुर्जन व्यक्ति की संगत से हमेशा नुकसान ही होता है।
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रविवार, 2 अगस्त 2020

कहानी लेखन 5


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

एक किसान, उसके दो बेटे - खेत में फसल का पकना - खड़ी फसल के बीच टिटहरी का घोंसला - उसके बच्चे छोटे - एक दिन किसान का आना - पड़ोसी से फसल काट देने को कहना - बच्चे चिंतातुर - टिटहरी के आने पर बताना - टिटहरी का कहना - डरो मत, फसल नहीं कटेगी - अगले दिन किसान का नौकरों को लेकर आना - फसल काटने को कहना - टिटहरी के बच्चे चिंतातुर - टिटहरी का वही उत्तर - उसके बाद किसान का अपने लड़कों को लाना - फसल काटने को कहना - टिटहरी के बच्चों का डर - टिटहरी का उत्तर, कुछ नहीं होगा डरो मत  - अगले दिन किसान का आना और कहना - "किसी के भरोसे रहने से काम नहीं होगा, कल से मैं ही कटाई करूँगा" - बच्चों का टिटहरी को बताना - टिटहरी का उत्तर  - "बच्चों! अब इस खेत को छोड़ देने में ही भलाई है"- कहानी की सीख। ---
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स्वयंकृति

एक किसान था। उसके दो बेटे थे। उसके पास खेत भी थे। वह उसमें फसल उगाता था। अभी खेत में फसल लगी हुई थी। फसल पकने को थी। उसी खेत में फसल के बीच एक टिटहरी का घोंसला था। वह उसमें अपने बच्चों के साथ रहती थी।

एक दिन किसान अपने पड़ोसी के साथ खेत पर फसल देखने गया। वहाँ उसने देखा कि फसल पूरी तरह पक चुकी है। उसने पड़ोसी से कहा कि कल से वह फसल की कटाई शुरु कर दे और दालान तक पहुँचा दे। यह वार्तालाप टिटहरी के बच्चों ने सुना, वे परेशान हो गए। सोच में लग गए कि अब हमारा क्या होगा ? टिटहरी के आने पर बच्चों ने उसे सूचित किया। टिटहरी सुनकर संयत रही और उसने बच्चों को समझाया – “डरने की कोई जरूरत नहीं है , फसल कटने वाली नहीं है।“

दो दिन बाद जब किसान नौकरों को लेकर खेत पर आया तो देखा कि फसल की कटाई शुरु नहीं हुई। उसने नौकरों से कहा कि कल से वे फसल की कटाई शुरु करें और उसे दालान तक पहुँचा दें। टिटहरी के बच्चों ने फिर बातें सुनी और लौटने पर टिटहरी को बताया। टिटहरी फिर भी शांत थी। उसने बच्चों को सान्त्वना दिया कि घबराएँ नहीं, ऐसे किसी पर निर्भर होने से काम नहीं होने वाला है।

फिर दो दिन बाद किसान अपने बेटों को लेकर खेत पर गया तो उसने देखा कि अब तक फसल कटना शुरु नहीं हुआ है। उसने नाराजगी जताते हुए अपने बेटों को ही अगले दिन से फसल काटने को कहा। टिटहरी को बच्चों  ने फिर खबर दी और टिटहरि बेफिक्र रहते हुए से बोली कि कोई  चिंता की बात नहीं है। किसान अब भी  दूसरों पर निर्भर कर रहा है। फसल नही कटेगी। तुम परेशान मत हो।

अंततः हुआ वही जो टिटहरी ने कहा, फसल कटनी शुरु नही हुई । टिटहरी के बच्चे निश्चिंत हुए। अब जब किसान खेत पर आकर देखा कि फसल कटनी अब तक भी शुरु नहीं हुई है, तब वह वह निराश हो गया। उसने सोचा कि अब किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता । वह अपने आप मे ही बुदबुदाया –  कल से मैं ही फसल काटने का काम शुरु करूँगा। हर दिन की तरह आज भी टिटहरी के बच्चों ने लौटने पर टिटहरी को बताया कि किसान कह रहा था कि वह खुद कल से फसल काटेगा। 

अब टिटहरी के चेहरे पर शिकन साफ दिखने लगी। उसने बच्चों से कहा – अब किसान खुद फसल काटने वाला है, इसलिए फसल कल कटेगी। हमारा अब इस खेत से हट जाना ही बेहतर होगा, वरना हमारा घोसला टूट जाएगा और हम बेघर हो जाएंगे। हो सकता है बच्चों को जान का भी खतरा हो। यही सोचकर टिटहरी अपने बच्चों को लेकर खेत छोड़कर चली गई।

अगले दिन किसान खुद आकर खेत में फसल काटना शुरु कर दिया। इस तरह से टिटहरी की व्यावहारिकता की वजह से समय पर उसने अपनी और बच्चों की  जान सुरक्षित कर लिया।

सीख – अन्यों पर भरोसा करने से काम पूरा होने की शक्यता ही रहती है।अनिश्चितता की स्थिति से उबरने के लिए और काम होने की निश्चितता के लिए अपना काम खुद ही करना चाहिए। इसी के कारण जब तक किसान पड़ोसी, नौकरों और बेटों पर निर्भर कर रहा था, तब टिटहरी परेशान नहीं हुई । जैसे ही किसान ने खुद फसल काटने की बात किया, टिटहरी अपने बच्चों को लेकर दूसरे खेत पर चली गई। इससे समय पर वह चौकन्नी होकर अपनी और बच्चों की जान बचा सकी।

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शनिवार, 1 अगस्त 2020

कहानी लेखन 4

 
 निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

बोपदेव नामक एक मंदबुद्धि बालक ... मंदबुद्धि के कारण गुरु द्वारा गुरुकुल से बाहर निकाला जाना ... बोपदेव का घर की ओर जाना ...रास्ते में प्यास लगने पर कुएँ को पास रुकना ...   कुएँ की जगत पर रस्सी के निशान देखना ... विचार करना ... पुनः गुरुकुल जाकर एकाग्रचित्त होकर पढ़ना ... सफल होना ... शिक्षा

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जगत पर निशान


एक गाँव में बोपदेव नाम का एक बालक रहता था। उसके माता - पिता ने उसे शिक्षा ग्रहण करने हेतु गुरुकुल भेजा। किंतु बोपदेव का मन पढ़ने में लगता ही नहीं था। कुछ ही दिनों में मंद बुद्धि वाला कहकर गुरूजी ने उसे गुरुकुल से निकाल दिया और कहा कि तुम यहाँ कुछ नहीं सीख सकते, घर जाकर पिता का खेती - बाड़ी में हाथ बँटाओ।

बोपदेव हताश निराश , अब क्या करता? अपने घर की तरफ चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद उसे प्यास लगी। थोड़ा और चलने पर उसे एक कुआं नजर आया।

बोपदेव पानी पीने कुएं की तरफ मुड़ गया। कुएं से पानी निकालते समय उसकी नजर जगत पर पड़े गहरे निशान पर पडी। उसने गौर से देखा तो उसे समझ आया कि हो न हो यह निशान पानी निकालते समय बार - बार रस्सी के जगत पर घिसने के कारण ही बना है। उसने सोचा -  " जब इस नरम रस्सी के बार - बार घिसने से पत्थर के बने इस  जगत पर इतना गहरा निशान बन सकता है तो मैं भी बार-बार पढ़कर बहुत - बहुत मेहनत करके गुरूजी के पाठ क्यों नहीं सीख सकता?" यही सोचकर बोपदेव ने घर जाने का इरादा बदल कर वापस गुरुकुल की तरफ चल पड़ा।

गुरुकुल पहुँच कर उसने गुरूजी को आपबीती सुनाई और अपना दृढ़निश्चय भी बताया कि मैं अब आपके पाठ को बार - बार पढ़ूँगा और सीखूँगा। गुरूजी को बोपदेव के निश्चय   पर विश्वास हुआ और उन्होंने बोपदेव को गुरुकुल में रहकर पढ़ने की इजाजत दे दी।

बोपदेव पुनः गुरुकुल में रहकर एकाग्रता के साथ बार-बार पढ़कर गुरूजी के पढ़ाए पाठ सीखता गया। जब वह गुरूजी के प्रश्नों का सही उत्तर देने लगा तो गुरूजी बहुत प्रसन्न हुए। अंततः अपनी मेहनत और लगन के बल पर बोपदेव ने गुरुकुल की हर परीक्षा उत्तीर्ण कर ली तथा वे बहुत ही विद्वान और ज्ञानी बन गए।
इसीलिए कहा जाता है:-

करत करत अभ्यास के,
जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात सों,
सिल पर पडत निशान।

सीख - वास्तव में कोई भी बालक मंदबुद्धि नहीं होता, कमी होती है एकाग्रता की। हमें अपनी मंजिल पाने के लिए निरंतर, अथक प्रयास करते रहना चाहिए। कोशिशें एक दिन सफल होती हैं। यदि बीच में ही हार मानकर कोशिश करना छोड़ देने पर मंजिल कभी नहीं मिल सकती। सफलता का राज कोशिश है। कहा गया है- कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
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