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हिंदी उपयोजित लेखन

मेरा अगला प्रकाशन श्रीमती मीना शर्मा जी के साथ ओस की बूँदेंं (Oas ki Boonden)

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

निबंध (परोपकार का महत्व)


परोपकार का महत्व

 

परोपकार का शाब्दिक अर्थ है दूसरों की भलाई। कहा गया है -

“अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए।

परोपकार का सबसे उत्तम उदाहरण प्रकृति है।सोचिए प्रकृति से हमें धूप, चाँदनी, वर्षा,फसल, खनिज, हवा, पानी और पेड़ों की छाया, लकड़ी, फल के अलावा क्या - क्या मिलते हैं। इस पर हम सब जीव- निर्जीव हमेशा धरती को अपने पैरों तले रौंदते हैं। धरती चुपचाप हम सबका भार वहन करती है।अब सोचें हम उसे क्या - क्या लौटाते हैं ? हमारे इसी दुर्गुण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। 

प्रकृति यानि कुदरत के परोपकार की कोई सीमा नहीं है। प्रकृति के इन गुणों को किसी कवि ने इस तरह प्रस्तुत किया है।

परोपकाराय फलंति वृक्षाः, परोपकाराय वहंति नद्याः

परोपकाराय दुहंति गावः, परोपकारार्थ मिदं शरीरं।

तात्पर्य यह कि जिस तरह वृक्ष फल देकर, नदियाँ बहकर और गाएँ दूध देकर परोपकार करती हैं वैसे ही हमारा शरीर भी परोपकार के लिए ही बना है।

    "यह पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

     वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

प्रकृति की रचना ही कुछ ऐसी है कि कोई भी एकदम एकाकी नहीं जी सकता, उसे किसी न किसी के साथ की जरूरत पड़ती है। इसीलिए मनुष्य को एक दूसरे का सहायक – मददगार होना चाहिए, जिससे वे एक दूसरे की जिंदगी को आसान बना सकते हैं। ऐसी आदतों की शुरुआत घर से ही होती है, घर की संस्कृति और संस्कारों से ही पनपती हैं। उसके बाद ये आदतें घर से बाहर निकलकर पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच जाती हैं। इस तरह देखा जा सकता है कि दो व्यक्ति एक दूसरे के सहायक होकर काम करें तो वे तीन लोगों का काम कर सकते हैं। 

सोचिए,आप एक आम, नारियल, ताड़ या सुपारी का पौधा रोपते हैं। इन पौधों को पनपकर फलदायक होने में वर्षों लग जाते हैं। तब तक पता नहीं आप कहाँ रहेंगे। आपका नौकरी में तबादला हो जाता है। आप नौकरी बदल लेते हैं। किन्हीं कारणों से मकान बदल देते हैं। सेवा निवृत्त होकर बच्चों के पास या अपने निजी मकान में या फिर किसी वृद्धाश्रम में चले जाते हैं।  वृक्ष फलदायक होने पर अगली पीढ़ी या कोई और ही उन फलों को भोगता है। जिन पेड़ों के फल हम खा रहे हैं उन पेड़ों को हमारे पूर्वजों ने लगाया होगा। 

प्रकृति ने जीवन चक्र की रचना इसी तरह किया है। बहुत कम ही ऐसे भाग्यशाली लोग होते हैं जो अपने बोए या अपने रोपे पौधे का फल खा पाते हैं।

पहाड़ों पर बरसा पानी तराइयों से होकर बहते हुए पठारों में नदी बनकर बहता है। पूरे रास्ते लोग उसके पानी के अलग - अलग उपयोग करते हैं। पीने के लिए और खेतों को सींचने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। जबकि पठारों में बरसा  पानी उनके काम नहीं आता, वह निचले इलाकों की तरफ बह जाता है और उस रास्ते की जनता उसका प्रयोग कर पाती है। यदि ऐसा न हो तो बरसात वाली जगहों पर बाढ़ आ जाएगी और दूसरे जगहों पर अकाल हो जाएगा।

आपके जन्म लेने पर किसी ने आपकी सेवा की होगी। आप उन सेवाओं का अनुभव करते - करते पनपते हैं। आपकी शारीरिक व मानसिक उन्नति होती है। जबकि उधर आपके सेवादार शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर होते चले जाते हैं। अब उनको आपकी सेवाओं का जरूरत होती है। एक दिन इसी चक्र मे चलते हुए आप भी कमजोर होंगे और किसी की मदद की जरूरत का अनुभव करेंगे।

अब आप भलीभाँति समझ गए होंगे कि पारस्परिक सहायता के बिना मानव जीवन असंभव है। यही परोपकार का महत्व है। आप किसी की सहायता करते हैं कभी कोई आपकी सहायता करता है। यही प्रकृति का नियम है। यही जीवन शैली मानव के लिए ईश्वर ने बनाई है। जब समाज में हमारी छोटी सी मदद से कोई अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है, किसी का भला हो सकता है तो क्यों न हम परोपकार को अपनी आदत और अपने जीवन का हिस्सा बना लें और अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों की मदद, सेवा और भलाई करते चलें।

निबंध (समय का सदुपयोग)

समय का सदुपयोग 

समय निरंतर चलता  रहता है। कभी किसी के लिए रुकता नहीं हैं। आप उस समय का कैसा प्रयोग करते हो, यह आप पर निर्भर करता है। समय के सदुपयोग से आपके जीवन में उन्नति होगी और दुरुपयोग से अवनति। 

समय बिना कुछ भी संभव नहीं है। आप खेलना चाहें, व्यायाम करें, पढ़ें या मजाक मस्ती करें – सब में समय की आवश्यकता होती है। जो क्षण बीत गया उसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। तभी तो कहा गया है-

  "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"

यदि समय का उपयोग करके आपने कुछ सीखा तो यह आपके लिए अच्छा हुआ । यही समय का सदुपयोग है। यदि व्यायाम किया या योग साधना की तो आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत में बढ़ोतरी हुई। इसी तरह जीवन में कई काम हैं जिनसे उन्नति होती है। जिसे समय का सदुपयोग कहते हैं।

समय का उपयोग हर कोई अलग अलग तरह से करता है।

एक व्यक्ति पढ़ रहा होता है तो दूसरा मजाक- मस्ती में समय बिताता है, तो कोई जुआ खेलने में व्यतीत करता है। 

यहाँ पढ़ने वाला कुछ सीख लेता है, मजाक - मस्ती कुछ समय तक हो तो वह मन मस्तिष्क को हल्का करती है ताकि अगले काम में सही तरह से मन लगे। 

यहाँ पहले व्यक्ति के समय का सदुपयोग हुआ । दूसरे के समय का सदुपयोग भी नहीं हुआ दुरुपयोग भी नहीं हुआ । तीसरा जुआ खेलने में समय के साथ पैसों की भी बरबादी करता है। उसका तो समय और पैसा दोनों बरबाद हुए।

ध्यान रहे कि बेहद मजाक – मस्ती से भी समय की बरबादी होती है। बीता समय कभी वापस नहीं आता। यह बहते नदी के जल के समान है जो बह गया तो बह गया फिर नहीं लौटता। जीवन का समय उपयोग नहीं किया तो वह बेकार गया। पल – प्रतिपल, दिन - प्रतिदिन आपकी उम्र बढ़ती है पर आपके पास बचा समय कम होता चला जाता है। 

कबीरजी ने तो कहा है -

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।।

गाँधीजी, नेहरूजी और अन्य महापुरुषों के भी दिन में चौबीस घंटे ही होते थे, किंतु उन्होंने इतने ही समय में बहुत कुछ संभव कर दिखाया। आज इंसान उसका दस प्रतिशत भी नही कार पाता। विज्ञान के आविष्कारों ने इंसान को आलसी बना दिया है।मजबूरी न हो तो शायद ही कोई मेहनत करे। खाना, पीना,सोना वाली जिंदगी आज सबकी पसंदीदा जिंदगी हो गई है। जो कई तरह की बीमारियों का कारण बन रही है। समय का सही उपयोग तो लोग भूल ही चुके हैं।

ईश्वर ने इंसान को सीमित जीवन काल दिया है, जिसका खुद इंसान को भी पता ही नहीं होता। इंसान को जो भी करना है, वह इसी अनिश्चित समय में ही करना है। इसलिए इंसान को चाहिए कि समय का सदुपयोग करे और जितना ज्यादा हो सके, काम पूरा करता जाए।

समय को वक्त और काल भी कहा गया है। यह बहुत ताकतवर होता है। किसी ने कहा है ना - "समय बड़ा बलवान"। समय के आगे किसी की नहीं चलती। बड़े बडे-बडे राजा- महाराजा, धनाढ्य, पहलवान की भी समय से पार पा न सके। कोई भी  के समय सामने टिक नहीं सका। समय की मार का कोई जवाब नहीं होता। 

सर्वशक्तिमान प्रकृति भी समय के साथ चलती है। सौर मंडल के ग्रह भी समयानुसार अपने कक्षों मे परिक्रमा करते हैं, जिससे दिन - रात और ऋतुएं अपने समयानुसार होती रहती हैं।  समय के पाबंद न हो तो बहुत से बनते काम बिगड़ जाते हैं।

    "का वर्षा जब कृषि सुखाने

     समय बीति पुनि का पछताने"

इसीलिए सबको चाहिए कि समय के साथ चलें और समय से होड़ न करें । समय की कद्र करें, समय आपकी कद्र करेगा।