इस ब्लॉग पर हिंदी में मुद्दों से कहानी लेखन, पत्र लेखन, निबंध व अन्य विधाओं का उपयोजित लेखन दिया जाएगा. आशा है कि विद्यार्थियों और शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए यह ब्लॉग उपयोगी रहेगा।
हिंदी उपयोजित लेखन

मेरा अगला प्रकाशन श्रीमती मीना शर्मा जी के साथ ओस की बूँदेंं (Oas ki Boonden)

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

कहानी लेखन 3


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।
एक गड़रिए का जंगल में भेड़ों को चराने जाना ...गड़रिए को शरारत सूझना ... झूठ-मूठ ''भेड़िया आया, भेड़िया" आया चिल्लाना ... गाँव वालों का सहायता के लिए आना ... गडरिए द्वारा कुछ दिनों बाद पुनः शरारत दोहराना ... गाँव वालों को बेवकूफ बनाना ... एक दिन सचमुच भेड़िए का  का गाँव वालों को सहायता के लिए पुकारना ... गाँव वालों का अनसुना करना ... भेड़िए द्वारा गड़रिए का मारा जाना।
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भेड़िया आया

प्रतिदिन की तरह एक गड़रिया भेड़ चराने जंगल में गया । आज उसे एक शरारात सूझी कि गाँव वालों को बुद्धू बनाया जाए – परेशान किया जाए । उसने एक तरकीब निकाली और अकारण ही चिल्लाने लगा- “भेड़िया आया - भेड़िया आया । आवाज जैसे ही गाँव वालों के कानों तक पहुँची , वे सब लाठी और अन्य हथियारों से लैस भेड़ और भेडिए को बचाने जंगल की तरफ भागे। 

जंगल पहुँचकर गाँव वालों ने जो देखा, वह आश्चर्यजनक था। गड़रिया एक टीले पर बैठै खिलखिला रहा था और भेड़ें चर रही थीं। गड़रिए से पूछा तो वह हँसने लगा, जैसे उसने अपनी अक्ल से गाँव वालों को बुद्धू बना दिया हो। गांव वाले भी गडरिए की इस हरकत को उसके बचपने की बचकानी हरकत समझ कर, चुपचाप वापस गाँव लौट गए। गड़रिए को एक तरफ तो अपनी अक्ल पर नाज हो रहा था तो दूसरी तरफ गाँव वालों को मूर्ख बनाने की खुशी हो रही थी। लेकिन उसे समझ नहीं  आ रहा था कि उसने गाँव वालों का कितना विश्वास खोया है।

इसी खुशी के चलते कुछ - कुछ दिनों के बाद गड़रिए ने फिर इसे दोहराया। गाँव वाले उसे बचाने के लिए आते और गड़रिए को हँसते खिलखिलाते देखकर निराश होते और लौट जाते। इससे गाँव वाले ज्यादा परेशान और निराश हुए। उन्हें गड़रिए की हरकत  ने उनको बहुत दुखी किया। लोगों का गड़रिए पर का विश्वास डगमगाया। लेकिन गड़रिया था कि इससे मजे ले रहा था। ऐसी हरकतों के होते रहने के कारण धीरे - धीरे गाँव वालों का भरोसा घटता गया।

कुछ अंतराल के बाद एक दिन सचमुच ही भेड़िया गड़रिए के आस-पास आ  गया। जान बचाने के लिए गड़रिया गला फाड़कर चिल्लाने लगा । आवाज गाँव वालों तक पहुँची भी, किंतु उन्होंने इसे गड़रिए द्वारा एक और मजाक समझ लिया। फलस्वरूप गाँव से कोई भी गड़रिए को बचाने जंगल नहीं गया। अंततः भेड़िए द्वारा गड़रिया मारा गया। इस तरह अपनी मजाकिया हरकतों से गड़रिए ने गाँव वालों का विश्वास खोया, यही उसके अपनी मौत का कारण बना।

सीख – हमें समय और हालातों को ध्यान में रखकर मजाक या शरारत करनी चाहिए। मजाक या शरारत ऐसी हो कि कोई दुःखी न हो। मूर्खता पूर्ण शरारतों के कारण ही गड़रिए ने अपने प्राण गँवाए।


बुधवार, 29 जुलाई 2020

कहानी लेखन 2


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

भूखी लोमड़ी ...भोजन की तलाश मे घूमना .... बगीचे में अंगूरों के गुच्छे  देखना ... लोमड़ी का उछल उछलकर अंगूरों पर लपकना ... अंगूरों के गुच्छे बहुत ऊँचाई पर होना ... लोमड़ी का थकना ... अपनी पराजय को स्वीकार न करना    ... अंगूरों को खट्टा बताना।
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खट्टे अंगूर

एक जंगल में एक लोमड़ी थी।एक दिन वह बहुत भूखी थी। भोजन की तलाश में इधर उधर भटक रही थी। वह भूख से बहुत परेशान थी। भोजन तलाशने की परेशानी में वह एक बगीचे में घुस गई। वहाँ उसने अंगूर की बेल देखी जिस पर अंगूर गुच्छों में लगे थे।अंगूरों का गुच्छा देखकर लोमडी ललचाई, उसकी भूख और तेज हो गई। 

वह लोमड़ी उछल - उछलकर अंगूरों के गुच्छे को पाने की कोशिश करने लगी। पर चूँकि अंगूर के गुच्छे बहुत ऊँचाई पर थे, लाख कोशिशों के बावजूद भी वे लोमड़ी के हाथ नहीं लगे।

अंततः लोमड़ी हार गई पर उसे हारना स्वीकार न था। उसने एक बहाना बनाया अपनी तसल्ली के लिए कि "अंगूर खट्टे थे इसलिए उन्हें छोड़ दिया" इसे ही कहते हैं - नाच न जाने , आँगन टेढ़ा।

घमंडी /धूर्त हार मानने से बचते हुए दोष दूसरे पर मढ़ता है। उससे अपनी गलती कभी स्वीकार नहीं की जाती। 

सीख- घमंडी और धूर्त अपनी हार छुपाने के लिए दूसरों पर दोष मढ़ते रहते हैं। हममें सच को स्वीकारने की हिम्मत होनी चाहिए।
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सोमवार, 27 जुलाई 2020

कहानी लेखन 1


निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर कहानी लिखकर एक उचित शीर्षक दीजिए।

क हरा भरा सुंदर वन.....इंद्र का आगमन...वन में घूमना...एक सूखा पेड़ दिखना...पेड़ पर एक तोता...इंद्र भगवान का प्रश्न... तुम हरे भरे वृक्षों को छोड़कर इस सूखे वृक्ष पर क्यों?...तोते का उत्तर...हरे भरे वृक्ष ने मुझे आसरा दिया, संकट में इसका साथ कैसे छोड़ूँ? ... इंद्र प्रसन्न ... वरदान...वृक्ष को पुनःहरा भरा ... सीख।
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कृतज्ञता

एक बार इंद्रदेव, किसी हरे भरे वन में विचरण करने गए। वन विचरण का आनंद लेते समय टहलते हुए उनकी निगाह एक सूखे पेड़ पर पड़ी। उन्हें आश्चर्य हुआ कि इस हरे भरे कानन में ये सूखा पेड़ कैसा? अवलोकन करते हुए उन्होंने सूखे पेड़ पर एक तोते को बैठे देखा। वे घोर आश्चर्य मे पड़ गए। 

यहाँ यह सूखा पेड़ और उस पर विराजमान यह तोता! जरूर कोई खास बात है। हरे भरे वृक्षों को छोडकर तोता इस सूखे पेड़ पर क्यों बैठा है? उन्होंने तोते से ही पूछ लिया कि तुम इस वन के सारे हरे भरे वृक्षों को छोडकर इस सूखे पेड़ पर क्यों बैठे हुए हो?


तोते ने जवाब दिया, "श्रीमन् ! अपने हरे भरे समय में यह वृक्ष ही मेरा आसरा था। धूप और बारिश में इसने मुझे शरण दी थी। हमेशा इसने मुझे पूरा सहारा दिया है। मेरा घोंसला इसी पर रहा। इसकी हरी भरी डालियों पर मेरे बच्चे खेल-कूदकर बड़े हुए और खुले आसमान में उड़ने के काबिल हुए। अब जब यह सूख गया और मुसीबत में है तो मैं इसका साथ छोडकर कृतघ्नता कैसे कर सकता हूँ? हमें तो उपकार करने वालों का कृतज्ञ होना चाहिए। उनकी मुसीबत के समय भी उनका साथ देना चाहिए। इसी आशय से मैं इस पेड़ पर बैठा हूँ। मैं इसे मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ सकता।"


इंद्रदेव को तोते की बात भा गई। उसकी कृतज्ञता पर वे प्रसन्न हुए और उन्होंने वृक्ष को पुनः हरा भरा कर दिया। तोता यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ।


सीख : हमे हमेशा उपकार करने वाले का कृतज्ञ होना चाहिए और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए, भले ही वह मुसीबत में हो।

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