इंटरनेट से लाभ - हानि
इंटरनेट प्रमुखतः संप्रेषण का माध्यम है। इससे कोई भी सूचना दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक पलक झपकते ही पहुँच जाती है।
एक जमाना वह था जब लोगों को खुद जाकर समाचार देना पड़ता था। फिर कबूतर और तोते संदेशवाहक बने। किसी के आने की खबर भी नहीं मिल पाती थी, लोग अचानक किसी के भी घर आ जाते थे। इसीलिए आगत को अतिथि कहा गया। आगत की समस्याओं को समझते हुए ही “अतिथि देवो भवा” का सिद्धान्त आया।
फिर एक दौर आया चिट्ठी - पत्री का । डाक विभाग चिट्ठियों का वाहक होता था । इसी समय बधाइयों और शादी के कार्ड भेजने का प्रचलन शुरु हुआ। कुछ समय लेकर ही सही, खबर लिखित में एक जगह से दूसरे जगह पहुँच जाती थी। दूर रहने वालों से मौखिक संप्रेषण का अब तक कोई तरीका नहीं था।
इसके बाद आया रेडियो का जमाना, जिसमें निश्चित समय पर समाचार प्रसारित होते थे। अखबार भी छपने लगे थे - रोज सुबह ही पिछले चौबीस घंटों की खबरें छपकर अखबार के रूप में द्वार - द्वार पहुँच जाती थी। फोटोग्राफी के आने से अखबारों में चित्र भी छपने लगे। चलचित्र (सिनेमा) भी शुरू हुए। धीरे - धीरे टेलीफोन और टेलिविजन आए। टेलीफोन से दूरस्थ लोगों की आवाज एक दूसरे तक पहुँचती थी और टेलिविजन से घटना की तस्वीर और वीडियो देखने मिल जाता था। पहले - पहल यह श्वेत - श्याम हुआ करता था। धीरे - धीरे सब कुछ बहुरंगी होने लगा।
उसके बाद आया मोबाइल। जिससे दुनिया छोटी हो गई, एक छोटा सा डिब्बा हाथ में लेकर कोई भी कहीं से कहीं भी बात करने लगा। 'दुनिया मेरी जेब में' का सपना साकार होता नजर आया।
इन सबके बाद इंटरनेट का पदार्पण हुआ। जिजसे संभव होने लगे। इससे दुनिया बहुत छोटी हो गई. धरती के किसी भी कोने से किसी दूसरे कोने तक बातचीत करना, संदेश भेजना – लिखित या मौखिक चित्र सब तरह के संप्रेषण इसमें बिजली की गति से संभव होने लगे।इससे दुनिया बहुत छोटी हो गई। धरती के किसी भी कोने से किसी दूसरे कोने तक बातचीत करना, संदेश भेजना - सब कुछ बहुत आसान हो गया। संप्रेषण की गति अत्यधिक बढ़ गई। पलक झपकते ही संदेश कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है।
इस तरह इंटरनेट आने से कई पुराने ग्रंथ, पुस्तकें और विशेष सूचनाएँ पलों में उपलब्ध होने लगी । विद्यार्थियों के लिए यह ज्ञान भंडार खुल गया । पहले जहाँ जानकारी के लिए दर - दर भटककर बहुत मेहनत पड़ती थी, अब अत्यधिक सुविधाजनक रूप से और अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध होने की वजह से लोग भ्रमित हो गए हैं। यह तय करना मुश्किल होने लगा है कि कौन सी जानकारी का प्रयोग करना है कौन सी नहीं। मतलब यह कि पहले तो जानकारी का अभाव था और जानकारी का असीम महासागर फैला पड़ा है। समेटें कैसे, क्या लें, कितना लें, यही समझ में नहीं आता।
इंटरनेट से घर बैठे गैस की बुकिंग, किसी से पैसों का लेनदेन, सिनेमा, रेल गाड़ियों और बस के टिकट बुकिंग, मकान दुकान की बुकिंग जैसे हजारों काम घर बैठे हो जाते हैं। बीमार होने पर अच्छे अस्पताल की जानकारी मिल जाती है। हर तरह के भोजन और राशन के सामान नेट की सुविधा से घर पर मिल जाते हैं। इंटरनेट से व्यापार बहुत बढ़ा है।
पढ़ाई भी ऑनलाइन शुरू हो गई। कोरोना के समय में लॉकडाऊन होने पर इंटरनेट सबसे ज्यादा काम आया। परीक्षाएँ भी ऑनलाइन होने लगी हैं और बहुत सारे ऑनलाइन पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं। कई सारे कोर्स घर बैठे किए जा सकते हैं।
लेकिन इंटरनेट की वजह से बहुत हानियाँ भी हैं। इस इंटरनेट की वजह से सामाजिक पोर्टलों की भरमार हो गई। इसमें कोई भी, कभी भी, कहीं भी, कुछ भी लिख सकता है. किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं है। इसलिए सही और गलत हर तरह की सूचनाएँ भर दी गई हैं । इससे विद्यार्थी धोखा खा जाते हैं।अक्सर देखा गया है कि किसी की कविता किसी के नाम से डाल दी जाती है। ऐसे कई प्रकरण सामने आए हैं. इस तरह की क्रियाओं के कारण इंटरनेट की साख गिरी है।
समाचारों की पुष्टि नहीं होती है, इसलिए अविश्वसनीय होने लगा है। कई बार तो किसी बड़ी हस्ती की मृत्यु की खबर फैला दी जाती है, कई झूठे समाचार फैला कर लोगों को डराने में इंटरनेट का बहुत दुरुपयोग हो रहा है।
नेट की वजह से सुविधा प्राप्त मानव आलसी हो गया है। अब उसे खाया हुआ पचाने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ती है। वह वाकिंग करता है जिम जाता है, जिसे हमारे पूर्वजों ने, मजदूरों और किसानों ने अनावश्यक ही समझा था ।
बे - लगाम होने की वजह से कई तरह की ऊल - जलूल सूचना व समाचार इसमे घर कर जाते हैं। अश्लीलता की यहाँ भरमार है। यह सब युवाओं को राह भटकाने के लिए काफी है। इसलिए इंटरनेट की सुविधाओँ का सदुपयोग या दुरुपयोग व्यक्ति विशेष के हाथ होता है। एक प्रचलित कोना है वीडियो गेम्स का । करीब - करीब हर नौजवान इसकी चपेट में है और कुछ गेम्स तो कइयों की जान ले चुके हैं। पता नहीं क्यों लोग समय , पैसा और जान तक गँवाने से भी डर नहीं रहे।
वैसे वीडियो गेम्स और गाने मन को आनंदित करते हैं. मस्तिष्क को तेज करते हैं, रिफ्लेक्सेस बढ़ाती हैं। भाषा की उन्नति करती है। किंतु गलत इरादों से बनी वीडियो गेम्स युवाओं को भटका रही है , उन्हें नशे की हालत तक पहुँचा रही है। लोग समय के साथ पैसा और जान गँवाने में भी नहीं सोच रहे हैं। इन हालातों में अभिभावकों की भूमिका प्रमुख होने लगती है कि बच्चे पर निगरानी रखें कि वह किस तरह के वीडियो गेम्स खेल रहा है. किस पोर्टल पर जाकर क्या देख रहा है? वीडियो गेम्स के दौरान युवा दुनिया भूल जाता है, उसे खाना, पीना, पढ़ना, सोना कुछ याद नहीं रहता।
नेट में गाने सुनने के पागलपन में युवा कान में माइक्रोफोन लगाकर सड़क पर गाड़ियाँ चलाते हैं, रेल्वे ट्रेक पर चलते रहते हैं। धुन इस हद तक होती है कि किसी की पुकार तो क्या, उन्हें गाड़ियों के हॉर्न और रेल्वे इंजन के हॉर्न भी उस दुनिया से बाहर नहीं निकाल पाते। इससे कई हादसे हुए , कइयों ने दुर्घटनाओँ में अपनी जान गँवाई।
आज ज्ञानार्जन के लिए नेट से आप कुछ भी यानी “कुछ भी” पा सकते हैं। अब आप पर निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं।आपका निर्णय ही आपका भला-बुरा तय करता है। यही तय करता है कि आप अपनी जिंदगी को किस तरफ मोड़ते हैं और किस रास्ते चल पड़े हैं. यहीं युवाओं और बच्चों को उचित मार्गदर्शन की जरूरत है, जो अधिकतर (साधारणतया) अनुपलब्ध है।
बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों और युवाओं को इंटरनेट की वास्तविकता से भलि भाँति परिचित कराएँ । इसकी विस्तृत जानकारी दें कि किस तरह के इंटरनेट उपयोग से जीवन को सुधारा या बिगाड़ा जा सकता है।
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